अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की डब्ल्यूएचओ को तल्ख चिट्ठी

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की डब्ल्यूएचओ को तल्ख चिट्ठी
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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख डॉ. टेड्रोस ऐडनम को चार पन्नों की चिट्ठी लिखी है। ट्रंप ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से इस चिट्ठी को साझा किया है। डोनाल्ड ट्रंप ने स्वास्थ्य की वैश्विक संस्था पर चीन का साथ देने का आरोप लगाया है। ट्रंप ने अपने पत्र में लिखा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उन विश्वसनीय रिपोर्ट की स्वतंत्रता से जांच नहीं की और न ही उनकी जांच की जो खुद वुहान शहर से स्रोत के तौर पर आई थी।

ट्रंप ने आगे लिखा कि दिसंबर की शुरुआत में वायरस के फैलने के दौरान जो रिपोर्ट सामने आई थीं उनकी अनदेखी की गई। अंत में उन्होंने लिखा कि डब्ल्यूएचओ के पास एकमात्र रास्ता यह है कि वो चीन के पृथक होकर काम करे। यहां आप पढ़ सकते है डोनाल्ड ट्रंप का डब्ल्यूएचओ को लिखा पूरा पत्र…
प्रिय डॉ. टेड्रोस
14 अप्रैल 2020 को अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को दी जाने वाली फंडिंग पर रोक लगा दी थी क्योंकि हमारी जांच में पाया गया कि डब्ल्यूएचओ कोरोना वायरस के बारे में बताने में नाकाम रहा।

हमारी समीक्षा में पाया गया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन की तरफ से मिली खुली छूट की वजह से महामारी को लेकर चेतावनी बहुत देर में दी। अमेरिका की ओर से की गई समीक्षा के आधार पर हम नीचे लिखी गई बातों को जान पाए हैं…

दिसंबर 2019 में वुहान में फैले कोरोना वायरस पर जो विश्वसनीय रिपोर्ट सामने आईं उसे डब्ल्यूएचओ ने नकारा, इसमें लानसेट मेडिकल की रिपोर्ट भी शामिल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने उन को रिपोर्ट की स्वतंत्र जांच नहीं की जो चीन की सरकार के विरोध में आई थीं।

30 दिसंबर 2019 तक बीजिंग में स्थित डब्ल्यूएचओ का ऑफिस जानता था कि वुहान में कोई बड़ी सार्वजनिक बीमारी आने वाली है। 26-30 दिसंबर  के बीच चीन की मीडिया ने नए वायरस के बारे में जानकारी दी। इसके अलावा डॉ जांग जिशियान ने चीन के स्वास्थ्य विभाग को कोरोना वायरस के बारे में जानकारी दी।

इसके अगले दिन ताइवान ने डब्ल्यूएचओ को इंसान से इंसान में फैलने वाले संक्रमण की जानकारी दी। इसके बाद भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पूरी दुनिया को इसके बारे में अवगत नहीं कराया।

अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य रेगुलेशन किसी भी हेल्थ इमरजेंसी को लेकर 24 घंटे में आगाह कर देते हैं लेकिन 31 दिसंबर तक चीन ने डब्ल्युएचओ को वुहान में फैल रहे कोरोना वायरस को लेकर जानकारी नहीं दी।

शंघाई पब्लिक हेल्थ क्लीनिक सेंटर के डॉ जान्ग योन्गजेन के मुताबिक उन्होंने पांच जनवरी 2020 को चीन के अधिकारियों को बताया कि उनके पास वायरस के जीन का समूह की श्रृंखला है। छह दिन तक इस सूचना को कहीं नहीं छापा गया तो 11 जनवरी को डॉ. जान्ग ने इसे खुद ऑनलाइन पब्लिश कर दिया। अगले दिन चीन ने संशोधन के लिए उनकी प्रयोगशाला बंद कर दी। लेकिन डब्ल्यूएचओ इन दोनों मुद्दों पर चुप रहा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से किए गए लगातार दावे या तो गलत थे या फिर अशुद्ध थे।

14 जनवरी 2020 तक विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन के इंसान से इंसान तक फैलने वाले दावे पर अड़ा रहा और कहा कि चीन के अधिकारियों की प्राथमिक जांच में कोरोना वायरस के ऐसे संक्रमण के बारे में कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं।

21 जनवरी 2020 को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने डब्ल्यूएचओ को कोरोना वायरस के बारे में जानकारी ना देने के लिए प्रेशर डाला और आपके संगठन ने कोरोना वायरस को अंतर्राष्ट्रीय चिंता का विषय ना मानने की बात कही।

28 जनवरी 2020 को राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ बैठक करने के बाद डॉ टेड्रोस ने चीन के पारदर्शी होने की तारीफ की और कहा कि चीन ने बीमारी को नियंत्रण करने के लिए बेहतरीन काम किया है। आपने यह नहीं बताया कि चीन ने कोरोना वायरस की चेतावनी देने वाले कितने डॉक्टर को सजा दी और सूचनाएं जारी करने पर रोक लगा दी।

30 जनवरी 2020 को संगठन ने बीमारी को पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित किया। 16 फरवरी तक विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीम ने वुहान का दौरा नहीं किया और विश्व स्वास्थ्य संगठन तब भी चुप रहा जब अमेरिका के दो बड़े डॉक्टरों को चीन ने वुहान में जाने के लिए मना किया था।

संगठन ने चीन की ओर से सीमाओं को बंद करने वाले कदम की सराहना की लेकिन अमेरिका ने चीन से आने वाले लोगों के आने पर रोक लगाई तो इसका विरोध किया। वुहान में लॉकडाउन लगाने से पहले चीन ने 50 लाख लोगों को शहर छोड़ने के लिए कहा और ये लोग दुनिया के अलग अलग हिस्सों में रहते थे।

तीन फरवरी 2020 से चीन दूसरे देशों से सीमाओं को बंद करने की मांग करने लगा लेकिन डब्ल्यूएचओ के चीन से फैले कोरोना वायरस के धीमे और कम फैलने वाले गलत बयान का खामियाजा कई देशों को झेलना पड़ा।

तीन मार्च 2020 को डब्ल्यूएचओ ने चीन के आधिकारिक आंकड़ों के आधार पर कहा कि कोरोना वायरस इनफ्लूएंजा की तरह बहुत तेजी से नहीं फैलेगा। डब्ल्यूएचओ ने बताया कि चीन में जितने मामले हैं उनमें से एक फीसदी मामले ऐसे हैं जो एसिम्टोमैटिक हैं जबकि कोरोना के मरीजों में दो दिनों में लक्षण दिख रहे हैं।

11 मार्च 2020 को डब्ल्यूएचओ ने कोरोना को महामारी घोषित किया लेकिन तब तक कोरोना से 114 देशों में एक लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके थे और चार हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी थी।

11 अप्रैल 2020 को कई अफ्रीकी देशों ने चीन के विदेश मंत्रालय को चिट्ठी लिखी कि चीन के कई शहरों में अफ्रीकी लोगों के साथ भेदभाव हो रहा है। डब्ल्यूएचओ ने चीन के इस रवैये पर कुछ नहीं कहा।

इस पूरे संकट के दौरान विश्व स्वास्थ्य संगठन चीन की पारदर्शिता को लेकर तारीफ करने में लगा रहा। जनवरी की शुरुआत में चीन ने वायरस के सैंपल मंगवाए ताकि उनको खत्म किया जा सके और दुनिया को इस भयानक बीमारी से अवगत ना कराया जाए। आज भी चीन वायरस के उद्गम को लेकर पुख्ता जानकारी सामने नहीं रखता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन चीन के वुहान की प्रयोगशाला से निकले वायरस की स्वतंत्र जांच कराने में असमर्थ रहा। हम जानते हैं कि डब्ल्यूएचओ बहुत अच्छा प्रदर्शन कर सकता था। कुछ साल पहले किसी दूसरे महानिदेशक के तहत डब्ल्यूएचओ ने दिखाया था कि वो क्या कर सकता है।

2003 में सार्स वायरस के फैलने के दौरान डब्ल्यूएचओ की महानिदेशक हारलेम ब्रुंडलैंड ने जल्द ही आपातकाल की घोषणा कर दी थी। वायरस के उद्गम स्थल पर आने-जाने की रोक लगा दी थी और इसके बारे में ना बताने के लिए चीन की आलोचना की थी। उस समय कई लोगों की जान बचाई गई थी।

ये साफ है कि डब्ल्यूएचओ ने इस बार कई गलत कदम उठाए हैं। डब्ल्यूएचओ के पास आखिरी रास्ता यही बचता है कि वो चीन से स्वतंत्र होकर काम करे। हमारे अधिकारी पहले ही आपसे बातचीत कर चुके हैं कि कैसे डब्ल्यूएचओ सही से काम कर सकता है।

अमेरिका के राष्ट्रपति होने के नाते मेरी ये जिम्मेदारी बनती है कि अगर अगले 30 दिनों में डब्ल्यूएचओ ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो संगठन को दी जाने वाली फंडिंग पर पूरी तरह से रोक लगा दी जाएगी और सदस्यता पर पुनर्विचार किया जाएगा।

 

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