2020 में उद्योगों से निकलने वाली गैसों में आएगी 8 प्रतिशत की गिरावट
दुनिया भर में लॉकडाउन भले ही अर्थव्यवस्था के लिए घातक साबित हुआ है पर पर्यावरण को संजीवनी मिल गई है। चीन में गैसों का उत्सर्जन अधिक होता है पर महामारी के कारण इसमें गिरावट आई है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के मुताबिक औद्योगिक ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 2019 की तुलना में 2020 में आठ फीसदी की गिरावट आएगी जो 80 साल के बाद सबसे बड़ी गिरावट होगी।
ग्रीन हाउस गैसों में पिछले साल की तुलना में इस बार अप्रैल के पहले सप्ताह में दुनिया भर में रोज होने वाले उत्सर्जन में 17 फीसदी की कमी दर्ज हुई है। पर्यावरणविदों की मानें तो कोरोना से साबित हो गया है कि समृद्धि अनिश्चित होती है। वह बिना किसी चेतावनी के जिंदगी को तहस-नहस करने के साथ स्थल पुथल मचा सकती है जलवायु परिवर्तन से नुकसान महामारी की तुलना में धीमा होता है पर अधिक भयावह होता है।
राजनेताओं को महामारी से जलवायु परिवर्तन से लड़ने की सीख लेनी होगी। वायरस और ग्रीन हाउस गैसें सीमा नहीं देखती हैं और दुनिया भर में अपना असर दिखाती है। गरीब और बीमार लोगों को इससे सबसे अधिक खतरा है। दो संकट कभी एक जैसे नहीं होते हैं, पर मिलते जुलते हो सकते हैं।
सौर ऊर्जा और वायु ऊर्जा पर ध्यान देना होगा
सौर और वायु ऊर्जा का प्रयोग लगभग पूरी तरह बंद होने का ही नतीजा है कि पर्यावरण को नुकसान होता चला गया। दशकों बाद अब इस ओर फिर से ध्यान देना होगा ताकि पर्यावरण को बचाया जा सके। कार्बन उत्सर्जन को लेकर अब रणनीति बनानी होगी। यूरोपीय देश कार्बन प्राइसिंग स्कीम पर जोर दे रहे हैं जहां दुनियाभर में सबसे अधिक उत्सर्जन होता है। इसी तर्ज पर दुनिया के दूसरे देश भी आगे बढ़ने की तैयारी में हैं।
जीडीपी में एक फीसदी की बढ़ोतरी संभव
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रहे जॉन बाइडेन भी इसका समर्थन कर चुके हैं और आने वाले चुनाव में इसे मुद्दा बना सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि दुनियाभर के देश अगर कार्बन टैक्स लगाते हैं तो उनके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में एक फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। इससे सरकार जरूरतमंदों पर खर्च की सीमा बढ़ा सकती है या सरकारी कर्ज भी कम हो सकता है। इस फैसले से सरकार को मदद मिल सकती है
उत्सर्जन कम करने की सीख मिलेगी
कार्बन उत्सर्जन पर टैक्स लगने के बाद कंपनियां और उपभोक्ताओं पर उत्सर्जन काम करने का दबाव होगा पेरिस संधि के तहत सभी को सार्थक कदम उठाने होंगे ताकि भविष्य के खतरे को कम किया जा सके। जलवायु परिवर्तन भविष्य का सबसे बड़ा खतरा है और इसकी तुलना कोरोना वायरस के बाद आगे की रणनीति बनानी होगी। इसमें किसी तरह की लापरवाही पूरी व्यवस्था पर भारी पड़ सकती है।