कोरोना के बढ़ते मामलों से मुंबई बेहाल, अस्पतालों में बिस्तरों की कमी
10 मई को मुंबई के एक 35 साल के बैंक एजेंट में शरीर के तापमान में अचानक तेजी आई। मुंबई शहर में कोरोना के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं इसलिए उस शख्स के परिवार ने उसे चेताया था, लेकिन उसने यह कहकर बात टाल दी कि वह किसी कोविड-19 संक्रमित इंसान के संपर्क में नहीं आया है।
तेज बुखार होने की वजह से वह शख्स पास के एक मेडिकल स्टोर से पैरासिटामोल की दवाई ले आया, हालांकि उस गोली से कुछ खास असर नहीं पड़ा। अगली सुबह उसके शरीर की तपन तेज हो गई और हालत पहले से ज्यादा खराब हो गई।
13 मई को उसके बड़े भाई उसे वीएन देसाई अस्पताल लेकर गए जहां एक्स रे की रिपोर्ट में बताया गया है कि फेफड़ों में निमोनिया के लक्षण हैं। डॉक्टर ने मरीज को कूपर अस्पताल रेफर कर दिया जो कोरोना इलाज के लिए बनाया गया है।
दो घंटे लंबी लाइन में लगने के बाद बताया गया कि बुखार दिखाने की लाइन अलग है और इस बीच एजेंट को सांस लेने में दिक्कत होने लगी। इसके बाद उसे एक निजी नर्सिंग होम ले जाया गया, लेकिन नर्सिंग होम ने भर्ती करने से मना कर दिया। बाद में उसे हिंदूजा अस्पताल ले जाया गया।
तीन दिन के बाद रिपोर्ट में पता चला कि शख्स को कोविड-19 है। बड़े भाई ने बृहन्मुंबई नगर पालिका के हेल्पलाइन नंबर पर कॉल किया, जिसके बाद दो डॉक्टर मरीज के घर पहुंचे। डॉक्टर ने बताया कि रात आठ बजे तक एंबुलेंस आ जाएगी जो चार घंटे की देरी के बाद रात 12.30 बजे मरीज के घर पहुंची।
देर रात घर पहुंची एंबुलेंस में ऑक्सीजन सपोर्ट नहीं था। कुछ देर बाद जब वो लोग गुरू नानक अस्पताल पहुंचे तो मरीज का ऑक्सीजन स्तर खतरनाक स्थिति में पहुंच गया था। गुरूनानक अस्पताल में कोई एक भी आईसीयू खाली नहीं था, इसलिए मरीज को सेवन हिल्स अस्पताल रेफर कर दिया गया। रात 1.45 मिनट पर वो लोग अस्पताल पहुंचे।
मरीज के बड़े भाई ने बताया कि पुलिस ने गेट पर ही रोककर अस्पताल में कोई बिस्तर खाली ना होने की जानकारी दी और नायर अस्पताल जाने के लिए कहा, लेकिन वहां भी कोई बिस्तर खाली नहीं था। एक स्थानीय नेता की मदद से मरीज को जोगेश्वरी ट्रॉमा सेंटर में एक बिस्तर मिला लेकिन वो भी सुबह नौ बजे के बाद उपलब्ध हो रहा था।
18 मई की सुबह नौ बजे जब वो जोगेश्वरी अस्पताल पहुंचे तो उन्हें पता चला कि वहां कोई बिस्तर खाली नहीं है, लेकिन दोपहर 12 बजे तक मरीज को भर्ती कर लिया गया था। मरीज के बड़े भाई ने बताया कि मरीज को उस रात वेंटिलेटर पर रखा गया और रात 12.35 पर उन्हें बताया गया कि उसकी कोविड-19 से मौत हो गई है।
वकोला का यह परिवार अकेला नहीं था जिनके मरीज की मौत लापरवाही से हुई बल्कि चेंबूर का एक परिवार एक मई से अपनी 62 वर्षीय महिला को अस्पताल में भर्ती करना चाह रहे थे लेकिन नहीं कर पाए।
गोवांडी के परिवार के 38 वर्षीय शख्स को चार दिन तक इलाज के लिए कोई अस्पताल नहीं मिला, अभी उसकी स्थिति गंभीर है और अबतक उनका टेस्ट भी नहीं हुआ है। कुछ इसी तरह का हाल मार्च और अप्रैल में न्यूयॉर्क का था।
मुंबई में अबतक कोरोना के संक्रमित मामले 30,542 है और 988 लोगों की मौत हो चुकी है। मुंबई के अस्पतालों में जरूरत से ज्यादा मरीज हैं और डॉक्टर शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक ट्रॉमा से गुजर रहे हैं। मुंबई प्रशासन ने निजी अस्पतालों को भी कोरोना के इलाज के लिए शामिल कर लिया और बसों और स्कूल वैन को एंबुलेंस बनाने की तैयारी चल रही है।
अस्पतालों में बिस्तरों की कमी
मुंबई में अस्पतालों को तीन वर्गों में बांटा गया है, जिसमें पहला वर्ग है कोविड केयर सेंटर-1 और कोविड केयर सेंटर-2। कोविड केयर सेंटर-1 उन मरीजों के लिए जो किसी कोरोना संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए हैं और कोविड केयर सेंटर-2 उन मरीजों के लिए जिनमें गैर लक्षण नहीं हैं।
दूसरा वर्ग है डेडिकेटेड कोविड हेल्थ सेंटर (डीसीएचसी) जो उन मरीजों के लिए हैं जिनमें कोरोना के लक्षण हैं और तीसरा वर्ग है डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल (डीसीएच) जिसमें उन मरीजों को देखा जा रहा है जिनमें दीर्घकालीन लक्षण हैं, वरिष्ठ व्यक्ति, गंभीर रूप से बीमार हैं।
मुंबई में कुल 73,000 बिस्तर हैं। इसमें से 5,500 डीसीएच, 10,000 डीसीएचसी, 23,000 सीसीसी एक और 34,500 सीसीसी 2 वर्ग के मरीजों के लिए हैं। बीएमसी के अतिरिक्त कमिश्नर सुरेश कुलकर्णी ने बताया कि कोविड-19 मरीजों के लिए मुंबई के पास पर्याप्त सीसीसी, डीसीएचसी और डीसीएच बिस्तर हैं।
सुरेश कुलकर्णी ने माना कि मुंबई के अस्पतालों में आईसीयू बिस्तरों की काफी कमी है। महाराष्ट्र सरकार का डाटा कहता है कि राज्य के 29 फीसद मरीजों को ही अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आती है।
अकेले मुंबई में 21,297 सक्रिय मामले हैं जिसमें से 6,100 लोगों को अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत है, 4,200 मरीजों को आईसीयू बिस्तर की जरूरत होगी और 1,060 मरीजों को वेंटिलेटर की सहायता लेना होगी।