72 साल में पहली बार शहीदी दिवस पर नहीं हुआ कोई आयोजन

72 साल में पहली बार शहीदी दिवस पर नहीं हुआ कोई आयोजन
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पिछले वर्ष पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति और विशेष राज्य का दर्जा समाप्त किए जाने के बाद प्रति वर्ष 13 जुलाई को मनाए जाने वाले शहीदी दिवस के उपलक्ष्य में इस बार कोई आधिकारिक कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया गया। इससे पहले जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने इस अवसर पर होने वाले सार्वजनिक अवकाश को अपने वार्षिक कैलेंडर से हटा दिया था।

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने 1948 में 13 जुलाई को इस छुट्टी का प्रावधान सरकरी कैलैंडर में किया था। कब्रिस्तान में आधिकारिक कार्यक्रम के अलावा मुख्य धारा के राजनीतिक दलों के नेता भी श्रद्धांजलि देने के लिए वहां जाते थे।

वर्ष 1931 में डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह के सैनिकों की गोलीबारी में मारे जाने वालों की याद में हर साल इस दिवस का विशेष तौर पर कश्मीर घाटी में आयोजन किया जाता था। अधिकारियों ने बताया कि राजपत्रित अवकाश से 13 जुलाई को हटा दिए जाने के कारण कब्रिस्तान में कोई समारोह नहीं हुआ।

पांच अगस्त 2019 को केंद्र द्वारा अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त किए जाने के बाद नेशनल कॉफ्रेंस के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की पांच दिसंबर को जयंती के साथ ही 13 जुलाई की छुट्टियों को इससे हटा दिया गया था। महाराजा हरि सिंह के शासन के विरोध के दौरान 1931 में डोगरा सेना की गोलीबारी में 22 कश्मीरी मारे गए थे।

अधिकारियों ने बताया कि कोरोना वायरस संक्रमण रोकने के लिए कश्मीर के अधिकतर हिस्से में लागू कड़े प्रावधानों के चलते सोमवार को मुख्यधारा का कोई भी नेता वहां नहीं पहुंचा। मीरवाइज उमर फारूक के नेतृत्व वाले अलगाववादी हुर्रियत कांफ्रेंस ने हड़ताल का आह्वान किया था। नेशनल कांफ्रेंस के एक नेता ने कहा कि शहीदों के कब्रिस्तान जाने की अनुमति मांगी गयी थी, लेकिन जिला प्रशासन की ओर से कोई जवाब नहीं मिला।

नेशनल कांफ्रेंस(नेकां) के अध्यक्ष और सांसद फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि यह दिन जम्मू-कश्मीर की पहचान और यहां के लोगों के अधिकार को मनाने का दिन है। नेकां उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा कि यह दिन दमन करने वालों के खिलाफ सामूहिक प्रतिकार का दिन है। पीडीपी ने कहा कि शहीदों की भूमिका को कभी नहीं भुलाया जा सकता।

पनुन कश्मीर, एएसकेपीसी सहित अन्य एसोसिएशन ने इस दिन को काला दिवस के रूप में याद किया। पनुन कश्मीर के अध्यक्ष वीरेंद्र रैना ने कहा कि इस दिन को इस वर्ष संकल्प दिवस के रूप में मनाकर कश्मीर में अपनी मातृभूमि की पुनर्स्थापना का संकल्प लेने फैसला किया है। कमल बागती ने कहा कि इस दिन 1931 में कश्मीरी हिंदुओं के खिलाफ सामूहिक लूटपाट और हत्याएं हुई थीं। 1931 की घटना 1986 में फिर से दोहराई गई और 1990 में कश्मीर से हमारा भारी पलायन हुआ।

 

 

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