ब्रम्हलीन प.पु.रामचंद्र डोंगरेजी महाराज का जीवन परिचय:-
इन्दोर मध्य प्रदेश में इनका जन्म हुआ तथा वडोदरा गुजरात में बडे हुए।डोंगरेजी महाराज एक प्रखर वक्ता और भागवत कथाकार थे। उनकी माता का नाम कमला ताई और पिता का नाम केशवभाई डोंगरे था।डोंगरेजी महाराज ने अहमदाबाद में सन्यास आश्रम और काशी में अभ्यास कर के थोडे समय में कर्मकाण्ड का व्यवसाय किया। उसके बाद सर्व प्रथम सरयू मंदिर अहमदाबाद में भागवत कथा का वाचन किया। उनकी वाणी से श्रोता भाव विभोर हो जाते है।
डोंगरेजी महाराज को शुकदेव तुल्य कहा जाता है, क्योंकि उनका जीवन शुकदेवजी जैसा निस्वार्थपूर्ण था।उनका पण था कि कभी कथा कि दक्षिणा नहीं लेनी; किसी बैंक में खाता नहीं; किसी का रुपीया लेना नहीं और कोई ट्र्स्ट बनाना नहीं।किसी को शिष्य बनाना नही और किसी का गुरु होना नहीं। विवाह किया परन्तु भक्ति मार्ग में अवरोध होने से पत्नी से दूर रहै।भागवतजी में शुकदेवजी के लिए अवधुत वेश शब्द का उपयोग हुआ है, डोंगरे बापा भी घुटने से लेकर कन्धो तक एक ही धोति और लंगोटी बांधते थे। पैर में पादुका जीवन पर्यंत नहीं पहनी।हाथ में घडी व अंगुठी पहनी नहीं।खुराक में मूंग और बाजरे की रोटी दुध के साथ लेते थे।काफी समय तो स्वयं ने अपना भोजन बनाकर ठाकुरजी को भोग लगाकर प्रसाद पाते थे।
इनका जन्म दि.15.2.1926 में हुआ। आठ वर्ष की आयू मे शिक्षा के लिए पंढरपुर महाराष्ट्र में गुरु आश्रम में जहां सात वर्षो तक पुराणो वेद वेदान्तो और धर्म संबंधि अभ्यास किया। भागवत पर प्रभुत्व प्राप्त करने के उपरांत ऊन्होने प्रथम भागवत कथा पुना शहर में की।गुजराती मे ई.सं.१९५४ में प्रथम भागवत कथा सोराष्ट्र में की।
गुजराती लोगो का संतराम मंदिर नडियाद गुजरात में अंतिम समय पसार कर दिनांक 9.11.1991 के दिन गुरुवार समय 9.37 पर अंतिम सांस लेकर ब्रम्हलीन हुए।
उनकी इच्छानुसार उनके नश्वर शरीर को वडोदरा के पास मालसर में नर्बदामैया के प्रवाह में जल समाधि देकर प्रवाहित किया।
एसे असंग संत भगवान के चरणो में कोटिशः वन्दन।