चीन के बीआरआई की बढ़त को किस हद तक रोक पाएगा अमेरिका का बीडीएन?
इस हफ्ते सलाहकार समूह की बैठक के साथ अमेरिका ने ब्लू डॉट नेटवर्क परियोजना को पुनर्जीवित करने की पहल की है। इस परियोजना का मकसद चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना का जवाब देना है। ब्लू डॉट परियोजना की रूपरेखा दो साल पहले तैयार की गई थी। लेकिन पूर्व डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने इसमें अपेक्षित दिलचस्पी नहीं ली। अब अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि “ब्लू डॉट नेटवर्क एक बाजार संचालित, पारदर्शी और टिकाऊ इन्फ्रास्ट्रक्चर संबंधी परियोजना होगी।” अमेरिका ने इस परियोजना के लिए एक सलाहकार समूह बनाया है, जिसकी पहली बैठक इसी हफ्ते पेरिस में हुई।
पेरिस की बैठक में अमेरिका के सहयोगी पश्चिमी देशों और जापान के प्रतिनिधियों के अलावा कुछ सिविल सोसायटी संगठन के नुमाइंदों और शिक्षाशास्त्रियों ने भी भाग लिया। तकरीबन 150 कंपनी अधिकारी भी इसमें शामिल हुए। इस परियोजना पर अमेरिका ने 12 ट्रिलियन डॉलर खर्च करने की महत्वाकांक्षा जताई है।खबरों के मुताबिक विश्व व्यापार में चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए जो बाइडन प्रशासन ने एक सप्लाई चेन स्ट्राइक फोर्स की शुरुआत भी की है। इस ग्रुप की कमान अमेरिका के व्यापार प्रतिनिधि के हाथ में है। खास कर चीन से रेयर अर्थ और नियोडाइमियम मैग्नेट के होने वाले आयात को लेकर बाइडन प्रशासन ने अपने व्यापार कानून की धारा 232 के तहत जांच करने का काम इस ग्रुप को दिया है। कहा गया है कि ऐसे आयात का अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा पर खराब असर पड़ सकता है।
हांगकांग की वेबसाइट एशिया टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन भी अमेरिका की इस पहल का जवाब देने के लिए कमर कस रहा है। वहां कुछ पश्चिमी कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी चल रही है। विश्लेषकों ने कहा है कि दोनों तरफ चल रही तैयारियां दोनों महाशक्तियों के बीच भविष्य में शीत युद्ध के और तीखा होने का संकेत हैं। इस शीत युद्ध में मुख्य प्रतिस्पर्धा टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आगे निकलने की है। ऐसी होड़ दुनिया ने इसके पहले कभी नहीं देखी गई है।
ब्लू डॉट नेटवर्क (बीडीएन) परियोजना के बारे में पहली घोषणा 2019 में की गई थी। उस समय इसकी कल्पना अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया-जापान की परियोजना के रूप में की गई थी। लेकिन ट्रंप प्रशासन के दौर में इस पर काम आगे नहीं बढ़ सका था। अब बाइडन प्रशासन ने इसे लागू करने का फैसला किया है। लेकिन चीन के बीआरआई और अमेरिका के बीडीएन में बुनियादी फर्क यह है कि चीन की परियोजना पूरी तरह सरकार संचालित है, जिस पर अमल पब्लिक सेक्टर की कंपनियां करती हैं। जबकि बीडीएन एक प्राइवेट-पब्लिक पार्टनरशिप परियोजना होगी, जिसमें निजी क्षेत्र की बड़ी बीमा और पेंशन फंड कंपनियों का बड़ा रोल होगा। इसके तहत सामरिक रूप से महत्वपूर्ण देशों में आधुनिक तकनीक संचालित परियोजनाएं लागू की जाएंगी।
विश्लेषकों का कहना है कि प्राइवेट कंपनियों के लिए मुनाफा सबसे अहम पहलू रहता है। इसलिए अपना पैसा लगाने के पहले परियोजना का लागत-मुनाफा आकलन करेंगी। जबकि चीन सरकार अपने रणनीतिक मकसदों के लिए आर्थिक घाटा उठाने को भी तैयार रहती है। इस पहलू के कारण अमेरिकी परियोजना के आगे बढ़ने में कुछ समस्याएं आ सकती हैं। स्ट्राइक फोर्स की कमान अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन टाई के हाथ में है। ट्राइक फोर्स का मुख्य काम चीन के ‘अनुचित व्यापार व्यवहारों’ की पहचान करना है। स्ट्राइक फोर्स को यह पता लगाने का जिम्मा सौंपा गया है कि चीन के ऐसे कौन से व्यवहारों के कारण अमेरिका के महत्वपूर्ण सप्लाई चेन कमजोर हुए हैं। टाइ ने कुछ समय पहले अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सामने कहा था- हमारे सप्लाई चेन कमजोर नहीं होने चाहिए, ताकि कोई प्रतिस्पर्धी देश उसका फायदा नहीं उठा सके। अब देखना है कि बीडीएन और ये फोर्स असल में चीन के प्रभाव को रोकने में कितने कामयाब होते हैं।