श्रीलंका: टूटी फौरी राहत की उम्मीद

श्रीलंका: टूटी फौरी राहत की उम्मीद
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श्रीलंका के नए वित्त मंत्री अली साबरी को अब इस बात का अहसास हो चुका है कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से मदद हासिल करना एक धीमी और मुश्किल प्रक्रिया है। आईएमएफ के अधिकारियों से हुई बातचीत के दौरान साबरी को कई ऐसे कठिन तथ्य पता चले, जिनका अहसास श्रीलंका सरकार को नहीं था

श्रीलंका सरकार को अब देश की वित्तीय हालत को लेकर निवेशकों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है। बीते 18 अप्रैल को डिफॉल्ट करने (कर्ज की किश्त चुकाने में अक्षमता जताने) के बाद से विदेशी निवेशकों की प्रतिक्रिया लगातार नकारात्मक होती गई है। 18 अप्रैल को श्रीलंका को 1.25 बिलियन डॉलर के बॉन्ड पर सात करोड़ 81 लाख डॉलर का ब्याज चुकाना था। उसके ये रकम ना चुकाने के बाद रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने श्रीलंका की रेटिंग घटा कर उसे ‘सेलेक्टिव डिफॉल्ट’ श्रेणी में डाल दिया है।

वेबसाइट निक्कईएशिया.कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक श्रीलंका के सेंट्रल बैंक के अधिकारियों ने बॉन्ड धारकों को लगातार यह आश्वासन दिया था कि उनकी रकम समय पर चुकाई जाएगी। अब लंदन स्थित एक निवेशक ने कहा है- ‘अधिकारियों के आश्वासन के मुताबिक 18 अप्रैल को हम उम्मीद कर रहे थे कि हमारी रकम चुकाई जाएगी। अब साफ है कि उनका ऐसा वादा करना अतार्किक था।’ इस सिलसिले में कुछ निवेशकों ने श्रीलंका की तुलना लेबनान से की है। लेबनान भी 2020 में डिफॉल्टर हो गया था।

श्रीलंका को इस साल विदेशी कर्ज की किश्त के रूप में 6.9 बिलियन डॉलर का भुगतान करना है। अब इस पूरे कर्ज पर उसके डिफॉल्ट करने का अंदेशा गहरा गया है। रेटिंग एजेंसियों के दर्जा गिरा देने के बाद पूंजी बाजार से कर्ज लेकर पुराना कर्ज चुकाने के दरवाजे श्रीलंका के लिए बंद हो चुके हैं। असल में 2020 में ही रेटिंग एजेंसियों ने श्रीलंका के दर्जे को जंक श्रेणी में डाल दिया था। पिछले 18 अप्रैल को उसके डिफॉल्ट करने का एक कारण यह भी बताया जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक इस तरह श्रीलंका कर्ज के दुश्चक्र में फंसता दिख रहा है।

जानकारों के मुताबिक श्रीलंका के नए वित्त मंत्री अली साबरी को अब इस बात का अहसास हो चुका है कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से मदद हासिल करना एक धीमी और मुश्किल प्रक्रिया है। कोलंबो स्थित विश्लेषकों के मुताबिक वॉशिंगटन में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अधिकारियों से हुई बातचीत के दौरान साबरी को कई ऐसे कठिन तथ्य पता चले, जिनका अहसास श्रीलंका सरकार को नहीं था।

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