सर्वोच्च न्यायालय का राममंदिर पर ऐतिहासिक फैसला , सत्यमेव जयते!

सर्वोच्च न्यायालय का राममंदिर पर ऐतिहासिक फैसला , सत्यमेव जयते!
Spread the love

नई दिल्ली

सर्वोच्च न्यायालय का आज अयोध्या पर सर्वोच्च और ऐतिहासिक फैसला आ गया। सर्वोच्च न्यायालय के 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने फैसला राममंदिर के पक्ष में सुनाया। और 70 साल के नासूर को खत्म कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय का फैसला 1045 पेज में है। 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अयोध्या पर आज देश का यादगार ऐतिहासिक फैसला और आदेश दिया। इससे पहले 70 साल तक चली कानूनी लड़ाई, ने 40 दिन तक लगातार मैराथन सुनवाई के बाद आज अयोध्या पर बहुप्रतीक्षित फैसला आ गया है।

खचाखच भरे कोर्ट रूम नंबर 1 में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने करीब 45 मिनट में एक-एक कर पूरा फैसला पढ़ा। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने फैसले में कहा कि टाइटल सिर्फ आस्था से साबित नहीं होता है। 1856-57 तक विवादित स्थल पर नमाज पढ़ने के सबूत नहीं है। उधर हिंदू इससे पहले अंदरूनी हिस्से में भी पूजा करते थे। हिंदू बाहर सदियों से पूजा करते रहे हैं। सुन्नी वक्फ बोर्ड को कहीं और 5 एकड़ की जमीन दी जाए। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने में ट्रस्ट बनाकर स्कीम बताए।

इस ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को भी प्रतिनिधित्व मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने आखिर में 2.77 एकड़ जमीन का मालिकाना हक रामलला विराजमान को दे दिया। कोर्ट ने आगे कहा कि हर मजहब के लोगों को संविधान में बराबर का सम्मान दिया गया है। फैसला सुनाते सर्वोच्च न्यायालय ने निर्मोही अखाड़ा और शिया वक्फ बोर्ड की अपील खारिज कर दी।  के दावे को खारिज करते हुए रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही पक्षकार माना।

इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा विवादित जमीन को तीन पक्षों में बांटने के फैसले को अतार्किक करार दिया। आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने रामलला विराजमान के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट ने आगे कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को कहीं और 5 एकड़ की जमीन दी जाए। इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वह मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने में ट्रस्ट बनाए। इस ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को भी प्रतिनिधित्व देने का आदेश हुआ है।

इससे पहले SC ने कहा कि 16 दिसंबर 1949 तक नमाज पढ़ी गई थी। टाइटल सूट नंबर 4 (सुन्नी वक्फ बोर्ड) और 5 (रामलला विराजमान) में हमें संतुलन बनाना होगा। हाई कोर्ट ने जो तीन पक्ष माने थे, उसे दो हिस्सों में मानना होगा। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट द्वारा जमीन को तीन हिस्सों में बांटना तार्किक नहीं था। इससे साफ हो गया कि मामले में अब रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड दो पक्ष ही रह गए। सर्वोच्च न्यायालय ने मुख्य पार्टी रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड को ही माना। सुन्नी पक्ष ने विवादित जगह को मस्जिद घोषित करने की मांग की थी।

कोर्ट ने फैसले में कहा कि 1856-57 तक विवादित स्थल पर नमाज पढ़ने के सबूत नहीं है। आपको बता दें कि मुस्लिम पक्ष ने कहा था कि वहां लगातार नमाज पढ़ी जाती रही थी। कोर्ट ने कहा कि 1856 से पहले अंदरूनी हिस्से में हिंदू भी पूजा किया करते थे। रोकने पर बाहर चबूतरे पर पूजा करने लगे। अंग्रेजों ने दोनों हिस्से अलग रखने के लिए रेलिंग बनाई थी। फिर भी हिंदू मुख्य गुंबद के नीचे ही गर्भगृह मानते थे। सर्वोच्च न्यायालय ने साफ तौर पर कहा कि खाली जगह पर मस्जिद नहीं बनी।

सर्वोच्च न्यायालय ने साफ कहा कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की खुदाई से निकले सबूतों की अनदेखी नहीं कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट का फैसला पूरी पारदर्शिता से हुआ है। बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी। कोर्ट ने कहा कि मस्जिद के नीचे विशाल रचना थी। एएसआई ने 12वीं सदी का मंदिर बताया था। कोर्ट ने कहा कि वहां से जो कलाकृतियां मिली थीं, वह इस्लामिक नहीं थीं। विवादित ढांचे में पुरानी संरचना की चीजें इस्तेमाल की गई थीं।

गौरतलब है कि मुस्लिम पक्ष लगातार कह रहा था कि ASI की रिपोर्ट पर भरोसा नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने फैसले में यह भी कहा कि नीचे संरचना मिलने से ही हिंदुओं के दावे को माना नहीं माना जा सकता। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ASI नहीं बता पाया कि मस्जिद तोड़कर मंदिर बनी थी। हालांकि अयोध्या में राम के जन्मस्थान के दावे का किसी ने विरोध नहीं किया। विवादित जगह पर हिंदू पूजा किया करते थे। गवाहों के क्रॉस एग्जामिनेशन से हिंदू दावा गलत साबित नहीं हुआ। हिंदू मुख्य गुंबद को ही राम के जन्म का सही स्थान मनाते हैं।

कोर्ट ने कहा कि रामलला ने ऐतिहासिक ग्रंथों के विवरण रखे। हिंदू परिक्रमा भी किया करते थे। चबूतरा, सीता रसोई, भंडारे से भी इस दावे की पुष्टि होती है। आपको बता दें कि ऐतिहासिक ग्रंथ में स्कंद पुराण का जिक्र किया गया था। उन्होंने कहा कि मस्जिद कब बनी, इससे फर्क नहीं पड़ता। 22-23 दिसंबर 1949 को मूर्ति रखी गई। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति की आस्था दूसरे का अधिकार न छीने। नमाज पढ़ने की जगह को हम मस्जिद मानने से मना नहीं कर सकते हैं। जज ने कहा कि जगह सरकारी जमीन है।

इससे पहले देश के मुख्य न्यायाधीष रंजन गोगोई समेत सभी पांचों जजों के सुप्रीम कोर्ट पहुंचने से पहले ही उनके घरों की सुरक्षा बढ़ा दी गई थी। कोर्ट परिसर में भी सुरक्षा काफी कड़ी है। सुबह के 10 बजते-बजते कोर्ट रूम नंबर 1 में वकीलों की खचाखच भीड़ हो गई थी। देशभर में सुरक्षा काफी सख्त है। कई शहरों में इंटरनेट पर पाबंदी लगा दी गई है।

Admin

Admin

9909969099
Right Click Disabled!