बांदा : टैगिंग से मिलेगी बांदा के चावल को पहचान
बांदा।
बिहार कृषि विश्वविद्यालय कुलपति डा. एके सिंह ने कहा है कि बांदा जिले में पैदा होने वाला मुस्कान, महाचिन्नावर, परसन और बासमती चावल की जीआई टैगिंग होना जरूरी है। तभी इसकी पहचान बनेगी। बांदा कृषि विश्वविद्यालय किसानों से मदद लेकर इसे राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पहचान दिला सकता है। उन्होंने कहा कि भारतीय किसानों को उत्पाद का सही मूल्य न मिलना विकराल समस्या है। इसके लिए किसानों को अपने उत्पाद एक प्लेटफार्म पर लाना होंगे। कुलपति एके सिंह यहां कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में आयोजित कृषक उत्पादक संगठनों के निदेशकों और मुख्य कार्यकारी अधिकारियों के तीन दिवसीय प्रशिक्षण (क्षमता वर्धन कार्यक्रम) को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि किसानों को अपनी समस्याओं के समाधान के लिए कृषक उत्पादक संगठन बनाना होगा। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय के पादप प्रजनक की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। ऐसा करने से खासकर बांदा और बुंदेलखंड में पैदा होने वाले उपरोक्त प्रजातियों के चावल की पहचान बढ़ेगी। इस दौरान मशरूम उत्पादन, संरक्षित खेती, बकरी पालन, मधुमक्खी पालन, बीज उत्पादन, खाद्य प्रसंस्करण और पशु पालन विषयों पर व्याख्यान और प्रायोगिक ज्ञान दिए गए।
कृषि प्रसार विभागाध्यक्ष डा. बीपी मिश्रा और सहायक अध्यापक डा. बीके गुप्ता व डा. धीरज मिश्रा ने यह प्रशिक्षण आयोजित किया था। समापन समारोह की अध्यक्षता कर रहे कुलपति डा.यूएस गौतम ने कहा कि एफपीओ के प्रयास से ही समृद्धि संभव है। इसके लिए विश्वविद्यालय हर संभव मदद करने को दृढ़ संकल्पित है। उन्होंने कहा कि टीशू कल्चर मशरूम उत्पादन, बीज उत्पादन, जैविक कीटनाशक उत्पादन और पशु पालन क्षेत्र में किसान संगठन बनाकर अपनी आय बढ़ा सकते हैं।
उन्होंने बताया कि बुंदेलखंड विकास बोर्ड के माध्यम से नौ से 11 जनवरी 2020 को विश्वविद्यालय राष्ट्रीय सम्मेलन करेगा। इसमें बुंदेलखंड की समस्याओं पर चर्चा होगी। प्रशिक्षण में स्वागत भाषण अधिष्ठाता डीएस पवार और धन्यवाद ज्ञापन अधिष्ठाता प्राध्यापक एसवी द्विवेदी ने किया। संचालन डा.धीरज मिश्रा द्वारा किया गया। प्रसार निदेशक प्रो. एनके वाजपेयी, प्रशासन निदेशक डा. वीके सिंह, डा. संजीव कुमार, डा. प्रिया अवस्थी, डा. नागेंद्र सिंह, प्रो. मुकुल कुमार, जनसंपर्क अधिकारी डा. बीके गुप्ता, डा. आरके सिंह आदि उपस्थित रहे।