सरकार और अमीरों की गलती की सजा भुगत रहे हैं मध्यम

सरकार और अमीरों की गलती की सजा भुगत रहे हैं मध्यम
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गरीब अप्रवासी मजदूरों का दर्द पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा को विचलित कर रहा है। पूर्व विदेश सचिव शशांक भी मानते हैं कि ये निर्दोष नीतियों में खामियों की सजा पा रहे हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की गरीब अप्रवासी मजदूरों के मुद्दे को लेकर अभी भी उत्तर प्रदेश सरकार से ठनी है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय रेल मंत्री पीयूष गोयल के बीच चल रही जंग भी चर्चा में है। बसपा प्रमुख मायावती को भी अचानक मजदूरों की याद आ गई है।

क्या मजदूर विदेश से हवाई जहाज में संक्रमण लेकर आए?मिर्जापुर, सोनभद्र समेत उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों में मजदूरों, कामगारों के लिए संघर्ष कर रहे दिनकर कपूर का कहना है कि आखिर मजदूरों का इसमें दोष क्या है? कपूर सवाल उठाते हैं कि क्या मजदूर विदेश से हवाई जहाज से कोरोना लेकर आए? दिनकर कहते हैं कि पहले अमीरों को यह बीमारी विदेश से लगी और इसे गरीबों तक फैला दिया और अब मजदूर इसका वाहक बनकर घूम रहा है। सरकार और नेता आपस में विवाद पैदा करके ध्यान बंटा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री और बसपा नेता सुधीर गोयल दिनकर कपूर की बात से पूरी तरह इत्तेफाक रखते हैं। सुधीर गोयल का कहना है कि जब मजदूर पैदल, साइकिल, रिक्शा, ठेला, डंफर, ट्रक पर कष्ट झेलकर, भारी किराया चुकाकर अपने गांव जा रहा था, तब सरकार सो रही थी।बसपा नेता को भी फिक्र नहीं थी। वह भूखा, प्यासा मर गया, बसपा जैसे दल ने उसके लिए प्याऊ तक का इंतजाम नहीं किया। अब सभी बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं।

सरकार ने नियम दर नियम बदल डाले

इनकम टैक्स विभाग के पूर्व असिस्टेंट डिप्टी कमिश्नर धनेश कपूर का कहना है कि आप मजदूरों को उनके गांव भेजने या जाने की पूरी घटना देख लीजिए। मुझे तो समझ में नहीं आया कि सरकार ने इतने नियम क्यों बदल डाले।

केंद्र और राज्य में कोई तालमेल ही नहीं दिखा। अब राजनीति करके मुद्दे को टालने की कोशिश हो रही है। धनेश का कहना है कि कहां मार्च के आखिरी सप्ताह में उत्तर प्रदेश सरकार मजदूरों, प्रवासियों को बस से ले जा रही थी।

प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में माफी मांग ली तो रुक गया। फिर मजदूरों को राज्य सरकारों की तरफ से अपने स्तर पर ले जाने की पहल शुरू हुई। इसके बाद केंद्र ने राज्यों की मांग पर स्पेशल श्रमिक ट्रेने चलाने का फैसला किया।

इसके टिकट के किराये को लेकर भी खूब राजनीति हुई। इसके बाद केंद्र सरकार ने सूची जारी करना शुरू किया कि किस राज्य ने कितनी ट्रेने मांगी हैं। जब राज्यों ने इस मुद्दे पर केंद्र से सवाल करना शुरू किया तो अब केंद्र सरकार उनके लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाएगी।

धनेश कपूर कहते हैं सभी मजदूरों को रेलवे स्टेशन तक ले जाने, पंजीकरण कराने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराने की जिम्मेदारी, स्टेशन से ले जाकर क्वारंटीन कराने, भोजन आदि देने की जिम्मेदारी तो राज्य सरकारों की है। राज्य सरकारों ने अपना काम किया नहीं, उलटे एक दूसरे पर दोषारोपण में जुटी हैं।

 

उद्योग, कारोबार ठप होने के डर के बाद आई मजदूरों की याद, लॉकडाउन में ढील
डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल प्रमोशन से रिटायर हुए अनिल कुमार का कहना है कि किसी को लॉकडाउन टू तक मजदूरों, कामगारों की सुध नहीं थी। यहां तक कि बिना राशन कार्ड वाले लोगों के लिए कई राज्यों ने नियम तक तय नहीं किए।

वह बताते हैं कि जब डर के कारण मजदूर महानगर छोड़कर जाने लगा, तब लोगों को उनकी याद आई। एमएसएमई मंत्रालय के एक निदेशक स्तर के अधिकारी के अनुसार मजदूरों के अपने बलबूते पलायन शुरू कर देने के बाद सरकार और उद्योग जगत को भी कामकाज ठप हो जाने का खतरा नजर आया।

एक राज्य के मुख्यमंत्री ने स्वीकारा कि प्रधानमंत्री के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान यह मुद्दा बाकायदा उठा। बताते हैं इसके बाद राज्य सरकारों ने अपने स्तर पर मजदूरों को रोकने की कोशिश शुरू की।

कर्नाटक सरकार ने बाकायदा बल प्रयोग तक किया। एमएसएमई मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि यदि सब कुछ योजनाबद्ध ढंग से लोगों की परेशानी का आकलन करके हुआ होता, तो समस्या इतनी गंभीर न होती।

आपने मजदूर को डरा कर भगा दिया
बिशन सेठ का अपना कारोबार है। कहते हैं सरकार और संपन्न वर्ग ने मजदूर को डरा कर भगा दिया। सरकार ने लॉकडाउन किया और छोटे-छोटे कारोबारियों, दुकानदारों, ठेकेदारों, रेजिडेंट हाउसिंग सोसायटी आदि ने हद कर दी।

सबने घरों में काम करने वाली मेड, गाड़ी क्लीनर, धोबी समेत अन्य सेवादारों को अपनी सुविधानुसार ट्रीट किया। सोसाइटी में प्रवेश बंद कर दिया। लेकिन माली, कूड़ा उठाने वाले, सफाई कर्मी आते रहे। ड्राइवरों को लोग अभी तक नहीं बुला रहे हैं।

संपन्न वर्ग ने सब अपनी सुविधानुसार किया है। धनेश कपूर भी इससे सहमत हैं। दोनों का कहना है कि अब लॉकडाउन 4.0 में पूरी दिल्ली करीब-करीब खुल गई।

एनसीआर खुल गया, लेकिन सर्विस सेक्टर पर प्रतिबंध बना हुआ है। हाउसिंग सोसायटीज अपने हिसाब से कानून व्यवस्था हाथ में लेकर प्रतिबंध लगा रही हैं।

लोग उन्हें पेमेंट भी या तो अपने हिसाब से कर रहे हैं या फिर ‘काम नहीं तो तनख्वाह नहीं’ की नीति पर चल रहे हैं। बिशन सेठ कहते हैं कि यह सर्विस क्लास दो महीने से घर बैठा है। उसके हाथ में पैसे नहीं आ रहे हैं। ऐसे में वह अपने गांव नहीं जाएगा तो क्या करेगा?
संपन्न के लिए व्यवस्था नहीं तो मजदूर को क्या मिलेगी?
बनारस में संजय सिंह एनजीओ चलाते हैं। विनोद कुमार माहेश्वरी का जूलरी का कारोबार है। डा. एसपी मिश्रा सरकार अस्पताल से हाल सीएमओ के पद से रिटायर हुए हैं। तीनों का मानना है कि सरकारी अस्पताल कोविड-19 के संक्रमितों से भरे हैं।

बनारस,  प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है, लेकिन व्यवस्था की खामी है। क्वारंटीन सेंटर बस जगह घेर कर बना दिए गए हैं। मूलभूत सुविधाओं की भारी कमी है।

 

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