समुद्र मंथन में सबसे पहले निकला हलाहल विष
विष्णु पुराण (Vishnu Puran) में अब तक आपने देखा समुद्र मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाया गया। देवताओं और दैत्यों ने अपना मतभेद भुलाकर मंथन आरंभ किया। समुद्र मंथन के परिणाम स्वरूप जो चौदह मूल्यवान वस्तुएं प्राप्त हुई थीं, उनमें से हलाहल (कालकूट) विष सबसे पहले निकला था।
कालकूट विष की ज्वाला बहुत तीव्र थी। हलाहल विष की ज्वाला से सभी देवता तथा दैत्य जलने लगते हैं। धरती पर हाहाकार मच जाता है। सभी देवता मिलकर भगवान शंकर की आराधना करते हैं तब भगवान शिव अपने भक्तों की रक्षा के लिए कालकूट विष का पान करते हैं। इसी विष के प्रभाव से शिव का कंठ नीला पड़ा, इसीलिए उन्हें ‘नीलकंठ’ के नाम से भी जाना जाने लगा।
दोबारा मंथन आरंभ होता है। इस बार समुद्र से लक्ष्मी रूपी नारी निकलती हैं जो स्वयं लक्ष्मी का अवतार थीं। इस नारी को ब्रह्मा ने सागर पुत्री का नाम दिया। इस सुंदर स्त्री के लिए देवता और दानवों में युद्ध होने लगा। फिर सागर पुत्री के रूप में जन्मीं माता लक्ष्मी ब्रह्मा के पास इसका समाधान मांगने जाती हैं।