आर्थिक मदद की दरकार

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11 करोड़ नौकरियां देने वाले MSME सेक्टर में नकदी की किल्लत, आसान कर्ज देकर तस्वीर बदल सकती है सरकार
देश की 6.5 करोड़ से अधिक एमएसएमई इकाइयों में 11 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार मिलता है। यह सेक्टर नकदी की भारी कमी से जूझ रहा है। स्थिति यह है कि लॉकडाउन खुलने के बाद भी एमएसएमई सेक्टर की लाखों इकाइयां चलने की स्थिति में नहीं हैं। इससे न केवल राष्ट्रीय स्तर पर रोजगार के मोर्चे पर संकट बना हुआ है, बल्कि बाजार में मांग भी नहीं पैदा हो पा रही है। आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि केंद्र सरकार को लॉकडाउन 1.0 की तरह इस बार भी इस सेक्टर के लिए विशेष राहत योजना की शुरुआत करनी चाहिए जिससे इस सेक्टर में गति पैदा की जा सके।

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रम यानी एमएसएमई (Micro, Small and Medium Enterprises) सेक्टर के चलने से न केवल 11 करोड़ से अधिक लोगों का रोजगार चल पड़ेगा, बल्कि इनके कर्मचारियों के हाथों में वेतन का पैसा पहुंचने से वे इसे बाजार में खर्च करेंगे और इस तरह बाज़ार में मांग का भी सृजन भी पैदा हो सकेगा। बाजार विशेषज्ञ सेक्टर के लिए एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की विशेष सहायता योजना की जरूरत बता रहे हैं।
मेटल कंटेनर मैनुफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय भाटिया ने अमर उजाला को बताया कि एमएसएमई सेक्टर के उद्योगों को दो श्रेणियों में बांटना चाहिए। एक तो वे जो पांच-छह वर्षों या इससे भी पुराने समय से चल रहे थे। इनका पैसा ठप पड़े बाज़ार में अलग-अलग जगहों पर विभिन्न कारणों से रुक गया है जिसके कारण इन कंपनियों के संचालन में बाधा आ रही है। सरकार को इनकी कर्ज क्षमता को मार्च-अप्रैल 2021 के आधार पर पुनर्मूल्यांकन कर इन्हें कर्ज उपलब्ध कराना चाहिए। एमएसएमई सेक्टर के दूसरे वर्ग में वे इकाइयां आनी चाहिए जिन्होंने साल-छह महीने पहले ही शुरुआत की थी, या बिलकुल नये स्टार्ट अप्स के रूप में खड़ी हो रही थीं। लॉकडाउन का सबसे बुरा असर इन्हीं कंपनियों पर पड़ा है। नकदी की कमी के कारण अब ये चलने की स्थिति में ही नहीं रह गई हैं। सरकार को इन्हें लंबे समय का आसान ब्याज पर कर्ज उपलब्ध कराना चाहिए जिससे इनका संचालन शुरू किया जा सके।

कितनी होनी चाहिए सहायता
राष्ट्रीय जन उद्योग व्यापार संगठन कार्यकारी अध्यक्ष अशोक बुवानीवाला ने कहा कि कोरोना से उद्योगपतियों का विश्वास बुरी तरह डगमगाया हुआ है। उनके विश्वास की वापसी के लिए सेक्टर को विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा करनी चाहिए। केंद्र सरकार ने लॉकडाउन 1.0 में जो 20 लाख करोड़ का आर्थिक पैकेज घोषित किया था, उसमें एमएसएमई सेक्टर को विशेष वरीयता देने की बात कही गई थी। लेकिन व्यावहारिक तौर पर अभी उस राहत पैकेज का लाभ उद्योगों तक नहीं पहुंच सका है। उसे तत्काल इन कंपनियों तक पहुंचाने की कोशिश की जानी चाहिए। इसके आलावा लगभग एक लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त सहायता देकर एमएसएमई सेक्टर को संकट से उबारना चाहिए क्योंकि यह कृषि की तरह हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।

एमएसएमई सेक्टर में कितने उद्योग
देश के सकल घरेलू उत्पाद में एमएसएमई सेक्टर का योगदान बढ़कर वित्त वर्ष 2018-19 में 30.27 फीसदी तक पहुंच चुका है। केंद्र सरकार के वर्ष 2015-16 के एक सर्वेक्षण के अनुसार देश में एमएसएमई सेक्टर में अनुमानित उद्योगों की संख्या 633.88 लाख हो चुकी है। इसमें इसमें विनिर्माण क्षेत्र में 196.65 लाख (31%), व्यापार क्षेत्र में 230.35 लाख (36%) और अन्य सेवाओं के 206.85 लाख (33%) उद्योग शामिल हैं। कुल एमएसएमई में 324.88 लाख (51%) और ग्रामीण क्षेत्रों में और 309 लाख (49%) शहरी क्षेत्रों में काम करते हैं। यानी ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराने के लिए भी ये बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। महिला सशक्तिकरण की दृष्टि से भी यह सेक्टर बड़ी भूमिका निभा रहा है। केंद्र के आंकड़ों के अनुसार एमएसएमई सेक्टर की 20.37 प्रतिशत इकाइयों का स्वामित्व महिलाओं के पास है।

कितने रोजगार उपलब्ध कराता है एमएसएमई सेक्टर
केंद्र सरकार के वित्त वर्ष 2015-16 में हुए सर्वेक्षण के अनुसार देश का एमएसएमई सेक्टर 11.10 करोड़ रोजगार का सृजन करता है। इसमें 3.60 करोड़ रोजगार विनिर्माण क्षेत्र में, 3.87 करोड़ व्यापार क्षेत्र में और 3.62 करोड़ रोजगार अन्य क्षेत्र में उपलब्ध हैं। एमएसएमई सेक्टर में मिल रही कुल नौकरियों में सबसे बड़ी भूमिका सूक्ष्म क्षेत्र की है जिसमें इस सेक्टर की कुल 10.76 करोड़ नौकरियां (97%) सृजित हुईं, जबकि लघु क्षेत्र में 3.31 लाख और माध्यम इकाइयों में केवल 5000 लोगों को ही रोजगार प्राप्त हुआ।   इस सेक्टर की रोजगार और मांग बढ़ाने में उपयोगिता को देखकर ही सरकार ने इस सेक्टर के विकास पर सबसे ज्यादा जोर दिया है। इस सेक्टर के विकास के लिए 6.5 हजार करोड़ ररुपये से अधिक का वार्षिक बजट निर्धारित किया जाता है।

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