दुनिया की सबसे खूबसूरत सरंचना है “मां” : मुनव्वर राणा

दुनिया की सबसे खूबसूरत सरंचना है “मां” : मुनव्वर राणा
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हम हमेशा से देखते आ रहे हैं कि अधिकतर शेरो-शायरी या मुशायरे आशिकी पर ही आधारित होते हैं। हर वाक्य में महबूबा के शब्द का प्रयोग करके आशिकों के हर पहलू की शैली को तमाम शायरों ने बेहद खूबसूरती से सजाकर लोगों तक पहुंचाया। इस तरह की शायरी को लोग बेहद पसंद भी करते हैं लेकिन मां पर शायरी करके और मां-बेटे के रिश्ते के एहसास को अपने अंदाज में पिरोने वाले दुनिया के एकमात्र शायर जिनको सुनने के बाद लोग मां को भगवान मानने लगे। पेश है ऐसे ऐसे जादूगर शायर मुनव्वर राणा से योगेश कुमार सोनी की एक्सक्लूसिव बातचीत के मुख्य अंश…

आपकी हर कविता, शेरो-शारयरी और मुशायरे में सिर्फ ‘मां’ आने का विशेष कारण।

दुनिया की सबसे सुंदर सरंचना अगर कोई है तो वो सिर्फ और सिर्फ मां है। नौ महीने अपने आप को तकलीफ में रखकर आपको दुनिया में लाकर जो आपको इंसानी रुप देती है, उसे भगवान से कम दर्जा देना चाहिए। यह वो रिश्ता है जो बिना किसी स्वार्थ के आपको जिंदगी को बनाने व संवारने में अहम भूमिका निभाता है। जो लोग मां की इज्जत करते हैं उनके ऊपर कभी कोई संकट नही आता। औऱ जो लोग मां को बुरा-भला भी कहते हैं व करते हैं, मां उनको भी कभी बद्दुआ नही देती लेकिन वो लोग कभी खुश भी नही रहती। मां वो रिश्ता है जो कभी कुछ नही मांगता।

आपकी शायरी का एक शेर है जिसे लोगो को बहुत पसंद करते हैं ”किसी के हिस्से मकान आया, किसी के हिस्से के हिस्से में दुकान आई, मैं सबसे छोटा था, मेरे हिस्से में मां आई‘’। इसमें आपने क्या समझाना चाहा है।

बदलती दुनिया के परिवेश में एक चीज बहुत अजीब हो गई कि जिससे आपको लालच या डर है आप सिर्फ उस ही इज्जत करते हो और आप हमला सिर्फ कमजोर पर करते हो। अब लोगों का गुस्सा या यू कहें कि कुंठा सिर्फ मां-बाप पर निकलती है। हमें चाहिए भी सब मां-बाप से, औऱ इज्जत भी उन ही की नही करते। बाप तो फिर भी औलाद को डाटकर या अन्य किसी माध्यम से अपना गुस्सा निकाल लेता है लेकिन मां कभी विरोध नही करती। पहले तो केवल धन-धौलत व जमीन-जायदात के बंटवारे होते थे लेकिन अब मां-बाप भी बंटवारे में आ गए। अपना परिवार बनने के बाद लोगों को माता-पिता भारी लगने लगे। कुछ परिवार में बच्चों को कहते देखता हूं कि कुछ दिन मां तेरे पास रहेगी और कुछ दिन मेरे पास। इसके अलावा कुछ लोग तो वृद्ध आश्रम में तक छोड़ने लगे।मां-बाप बोझ या बंटवारे के लिए नही बने, वो भगवान होते हैं।

हर व्यक्ति सिर्फ दौलत के पीछे भाग रहा है। जिस पर जितना है उससे कोई भी संतुष्ट नही है।जिसके पास घर औऱ गाड़ी नही हैं वो उसके लिए बैचेने औऱ जिस पर छोटा है वो औऱ ब़ड़ा लेना चाहता है, वो इसके लिए परेशान है। कहने का मतलब यह हुआ कि इंसान अब अपनों के पास, विशेष तौर पर माता-पिता के साथ नही बैठता क्योंकि वो इन सब बातों व्यर्थ मानने लगा और सिर्फ अपनी ऊधेड़बुन में इतना परेशान रहता है कि कैसे पूरी दुनिया पर राज करुं। लेकिन वो भूल गया जो सूकून मां के चरणों में वो दुनिया में कहीं नहीं। लोगों को यह बात पता ही नही कि जो ज्ञान बुजुर्गों के पास है वो गूगल के पास भी नही हैं। तरक्की करना गलत नही हैं लेकिन तरक्की के चलते रिश्ते खोना बेहद गलत बात है।

अब मुशायरे का दायरा बेहद सीमित हो गया। क्या कारण है।

देखिए, अब चीज में प्रोफेशनलिज्म आ गया। पहले के मुशायरों को लोग सुनकर जीते थे औऱ उन बातों का सुनकर अपनी जिंदगी में भी उतार लिया करते थे। यदि इस बात को उदाहरण के तौर पर बताऊं तो पहले की फिल्मों को देखकर लोग अपनी जिंदगी में उतार लिया करते थे बल्कि हीरो-हीरोइन जैसे बाल बनाने और उनके जैसे कपड़े तक पहनते थे। लेकिन अब हर चीज मात्र बहुत कम समय के लिए मनोरंजन का साधन बन गई। मैं लगभग 45 वर्षों से मुशायरा कर रहा हूं। पहले इतनी भीड़ होती थी और हर कोई हमें आराम से सुनता था लेकिन अब हमारे कार्यक्रमों में एंट्री पास का सिस्टम होने लगा क्योंकि अब हर चीज बिकती है। लेकिन मैं देश की जनता का शुक्रगुजार हूं कि उन्होनें मेरी सभी शेरो-शायरी, कविताएं औऱ पुस्तकें पसंद की। जब लोग कहते हैं कि आपकी मां वाली कविता सुनने के बाद मैं अपनी की इज्जत और प्यार करने लगा, तब लगता है कि यह मेरी नेक कमाई है।

आपकी ओर से कोई विशेष संदेश।

देश की जनता से यही अपील करुंगा कि राजनीति के चक्कर में आपसी रिश्तें खराब न करें। हमारा देश धर्म निरपेक्ष देश है। यहां हर रगं, भाषा, जाति, लिंग, धर्म का सम्मान एक जैसे ही किया जाता है। मैं जब 14 वर्ष का था जब मुझे पता चला था कि मैं मुसलमान हूं क्योंकि हम तो जैसे ईद मनाते थे वैसी ही दिवाली। लेकिन अब तो पांच साल के बच्चे के मन में धर्म को लेकर इतना अलगाववाद भर दिया जाता है कि वो पढ़ाई-लिखाई बाद में समझता है लेकिन धर्म के नाम नफरत पहले। इसके अलावा सोशल मीडिया पर जो लोग गलत चीजें फैला रहे हैं वो बंद करे क्योंकि जो प्यार और जीत एक साथ रहकर होती है वो जुदा रहकर नही। एक बात ओर कहना चाहूगां कि जिंदगी में कैसी भी परिस्थितियां आ जाए अपने मां-बाप को कभी अपनी जिंदगी से अलग या अपनी दुनिया से दूर मत करना क्योंकि हम ही उनकी दुनिया होते हैं। मरने के बाद तो लोग उनके नाम पर देसी घी के भंडारे करवाते हैं औऱ सबसे महगें फ्रेम में उनकी फोटो लगवाते है और जीते-जी उनको पानी तक नही पूछते। एक बात हमेशा याद रखना कि मां ही एक मात्र ऐसी शक्ति है कि जो आपके लिए भगवान से भी लड़ सकती है और ऊपर वाला भी सिर्फ मां की ही सुनता है। इसलिए सम्मान कीजिए और जिंदगी में आगे बढिये।

सौजन्य – वेबवार्ता
Admin

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