ब्रिटेन: जॉनसन के दांवने ढहाया लेबर पार्टी का 100 साल पुराना किला

ब्रिटेन: जॉनसन के दांवने ढहाया लेबर पार्टी का 100 साल पुराना किला
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ब्रिटेन में 12 दिसंबर को हुए आम चुनाव के नतीजों ने कई संदेश दिए हैं। चुनाव नतीजा एकतरफा रहा और बोरिस जॉनसन की कंजरवेटिव पार्टी (टोरी) को जबरदस्त बहुमत मिला। इस बार जॉनसन को मार्गरेट थैचर जैसा ही जनादेश मिला है। इसके साथ ही लेबर पार्टी ने 1930 के बाद सबसे बड़ी पराजय झेली। 2016 के जनमत संग्रह के बाद ही साफ हो गया था कि ब्रिटेन यूरोपियन यूनियन (ईयू) छोड़ देगा। अब इसपर मुहर भी लग गई है। जनवरी के अंत तक ब्रिटेन इससे बाहर हो जाएगा। बहरहाल, टोरियों की जीत बताती है कि ब्रिटेन की राजनीति में बदलाव आ चुका है। कंजरवेटिव पार्टी ने लेबर पार्टी को पूरी तरह ध्वस्त करते हुए उसके 100 साल पुराने जनाधार पर कब्जा कर लिया। कंजरवेटिव पार्टी को अमीरों की पार्टी कहा जाता है बावजूद इसके उत्तरी और मध्य इलाके में मजदूर वर्ग के वोटरों पर अपनी छाप छोड़ दी। इसी के साथ लग रहा है जैसे ब्रिटेन में लगभग एक दशक तक कमजोर बहुमत से चलने वाली सरकारों का दौर बीत गया है। जॉनसन के पास संसद का पूरा समर्थन रहेगा। थैचर और टोनी ब्लेयर की तरह ही जॉनसन के पास ब्रिटेन को आगे ले जाने की पूरी छूट होगी। कंजरवेटिव पार्टी ने लेबर पार्टी के गढ़ रहे इलाकों में जबरदस्त सेंधमारी की है। दिलचस्प बात ये है कि जिस ब्लाइथ घाटी में टोरियों को दुश्मन माना जाता था, वहां भी पार्टी को जीत मिली है। लेबर नेता जेरेमी कोर्बिन को जनता ने पूरी तरह ठुकरा दिया। कोर्बिन ने जॉनसन के अर्थव्यवस्था पर उठाए गए कदमों और वादों पर सवाल उठाए थे। वहीं, जॉनसन ने आरोप लगाए थे कि कोर्बिन ने तानाशाहों और आतंकवादियों के प्रति नरमी बरती है। अंत में चुनाव नतीजों ने जॉनसन की जोखिम भरी रणनीति पर मुहर लगा दी है। उन्होंने मजदूर वर्ग के ब्रेग्जिट वोटरों पर ध्यान दिया था। इसी का असर रहा कि लेबर पार्टी को कई सीटों पर हार झेलनी पड़ी। जॉनसन की ये जीत कई मायनों में अहम रही। उनकी जीत के कारणों को भी समझने की जरूरत है।

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